मंगलवार, मई 17, 2011

हम अब भी वहाँ बैठे हैं


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खुद से होकर जो पशेमान, यहाँ बैठे हैं,
हम किसी बुत के तसव्वुर में, कहाँ बैठे हैं

अब तेरी वस्ल में बैठेंगे,जो हम बैठेंगे,
दर से तेरे जो उठे,लोग, कहाँ बैठे हैं

पूछते ही नहीं, अब आप मेरा हाल हुज़ूर,
और कई साल से, आँखों में निहाँ बैठे हैं

ये मेरी खू-ए-तमन्ना के, निशाँ हैं बाक़ी,
वो जहाँ बैठे थे,हम अब भी वहाँ बैठे हैं



पशेमान : Embarrassed बुत : sculpture(beloved who is as beautiful as a sculpture)
तसव्वुर : thought वस्ल : meeting with beloved
दर : door/gate निहाँ : hidden/not obvious
खू-ए-तमन्ना : passion of desire

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शनिवार, मई 14, 2011

कू-ए-जाना

दर से उसके जो उठे, उम्र भर बर्बाद रहे
दश्त में रोया किये, बस्ती में नाशाद रहे..

इश्क में उनके हमें, फैज़ इतना तो मिला
सोचकर उनको कभी, देर तलक शाद रहे

इससे बेहतर मेरी यादों का पता क्या होता
झील सी आँख तले , दश्त भी आबाद रहे

वक़्त-ए-रुखसत मुझे, उसने ये दुआ दे डाली
सूखे सेहरा में 'तुम्हे', अश्क की इमदाद रहे

शनिवार, अप्रैल 23, 2011

मिज़ाज


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किसी करम पे अब खुशफ़हम नहीं होता
ज़िन्दगी ज़िन्दगी है, ये वहम नहीं होता..

तेरे बगैर ही कटती है, ज़िन्दगी सबकी,
तेरा फ़िराक कोई कोह-ए-ग़म नहीं होता

उसे जो ढूँढने निकले, तो ये जाना है
दयार-ए-यार से बढ़कर हरम नहीं होता

सदा के बदले ही पायी है शायरी हमने,
शेर लिखते हैं, अगर ज़ब्त-ए-ग़म नहीं होता...




करम kindness खुशफ़हम who believes in his own version
कोह-ए-ग़म mountain of grief दयार-ए-यार Beloved's place
हरम house of God सदा voice ज़ब्त-ए-ग़म patience to contain grief


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कैसे

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मैं तुमसे इश्क किस कदर करता
अपने क़ातिल को चारागर करता

दीदार की आरज़ू लिए दिल में,
मर गया मैं, तो क्या नज़र करता


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दिल्ली

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मिज़ाज-ए-दिल में अभी, और जब्त बाकी है,
चमन है उजड़ा, पर एक दरख़्त बाकी है

बुरी है गुज़री, हम पे, हयात इस करके,
तेरे फिराक में भी जाँ ये सख्त, बाकी है,

शमाँ सा जल गया, मैं हस्ती-ए-ज़फर की तरह,
देखें दिल्ली पे अभी, क्या-क्या वक़्त बाकी है..

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शनिवार, अप्रैल 09, 2011

त्रिवेणी...

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मेरा ग़म दायरों में चलता है
अश्क से पहले, आँख मलता है

हिचकियाँ लाइलाज़ होती हैं!!!

मैंने देखा, वो चाँद सा चेहरा
चाँद भी जिससे, बहोत जलता है

चलो अब रोज़ा खोल दे यारों!!!

एक बाज़ार सी ये दुनिया है
"दिल तो बच्चा है" की मचलता है

उनकी कीमत का कुछ हिसाब नहीं!!!

वो मेरे जिस्म को नहीं छूता
रूह में करवटें बदलता है..

जमाने को अब तो ऐतराज नहीं!!!



(आखिरी मुग़ल बादशाह ज़फर के दरबार में त्रिवेणी ईजाद हुयी...
पहले दो मिसरे एक बात कहते हैं, पर तीसरा मिसरा
उपर के दोनों मिसरों को एक अलग ही रंग देता है..)


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सोचता हूँ

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सोचता हूँ कि भूल जाऊं तुम्हें, सोच के भूल कैसे पाऊंगा
उसको भूलूं ये कैसे मुमकिन है, मै जिसे ज़िन्दगी सा चाहूंगा..

इश्क में तहज़ीब का अदब होता, तुमसे ऐसा भी एक अहद होता
वक़्त ने गर हमें मिलने ना दिया, मै तेरा अजनबी बन जाऊँगा..

हम कहाँ तौर-ए-इश्क जाने हैं, हमसे बेहतर तो ये परवाने हैं...
मै तो जल के भी देखो ज़िन्दा हूँ, यूँ ही जल-जल के जिया जाऊंगा..

दर्द के पिछले सफे खुलने लगे, तुमको देखा तो अश्क गिरने लगे..
चाँद को पाना किसकी किस्मत है, फिर भी मैं फिर से मचल जाऊंगा...


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शुक्रवार, अप्रैल 08, 2011

तस्लीम

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किसी करम का अब हौसला नहीं करता
उसे ना देखा, अब ये गिला नहीं करता..

हर एक गाम, नया ज़ख्म लगा देता था
बड़ा ख़ुलूस की अब,वो मिला नहीं करता..

जरूर बात कोई मेरी गरां गुजरी है
वगरना प्यार का वो,ये सिला नहीं करता..

हाय मसरूफ जमाना, की वो परी चेहरा
सितम भी करता है, तो सिलसिला नहीं करता..



करम : Kindness, इल्तेज़ा : Request, गिला : Complaint, गाम : Step, ख़ुलूस : Sweet,
गरां : heavy, वगरना : Otherwise, सिला : Reward,
मसरूफ : Busy, सितम : Torment, सिलसिला : Sequence
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तौफ़ीक..




मेरा ग़म दायरों में चलता है

अश्क से पहले, आँख मलता है....


मैंने देखा, वो चाँद सा चेहरा

चाँद भी जिससे, बहोत जलता है..


एक बाज़ार सी ये दुनिया है

"दिल तो बच्चा है" की मचलता है...


वो मेरे जिस्म को नहीं छूता

रूह में करवटें बदलता है....



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तू

तेरे फ़िराक में गुम, कायनात बन्दे की
नहीं है वस्ल की सोहबत में, ज़ात बन्दे की...

तेरा रुख, तेरे अबरू, तेरे लिबास का रंग
कभी इस दौर से गुज़री, हयात बन्दे की...

मेरे वजूद में शामिल है, वो खुदा की तरह...
उसको माने के ना माने, जमात बन्दे की...

शौक



तेरी आहट से मेरे दिल में रवानी सी है ,
मेरे जज़्बात की महफ़िल में जवानी सी है...

एक अहसास है ये इश्क, सिवा इसके क्या है,
बात मासूम सही, इसमे कहानी सी है....

रौनक-ए-बज़्म में कुछ देर तो दम लेके चलूँ
आगे तन्हाई है, रास्ता है, वीरानी सी है....

ऐ मेरे दोस्त ये मेरे शौक की दुनिया ना सही,
ज़िन्दगी रस्म है, हमको निभानी सी है...

शनिवार, मार्च 26, 2011

गुफ़्तगू ...




वो मेरे अन्दर रहता है, और तेरी बातें करता है,
वो बिलकुल मेरे जैसा है, पर तुझको अपना कहता है

कुछ ऐसी उसकी उल्फत है , तुझको देखे तो जन्नत है...
वो तनहा है और महफ़िल में भी तनहा-तनहा रहता है...

कैसा दीवाना पागल है उस रोज़ मुझे मालूम हुआ
जब बोला देखो चाँद मुझे खिड़की से देखा करता है...

मै अक्सर उसको कहता हूँ, ना तुमसे इतना प्यार करे
क्या चाँद किसी को मिलता है, बस आसमान में रहता है..


(जब करीब १० साल पहले, एक रोज़ खुद से गुफ़्तगू की थी..)

बुधवार, मार्च 16, 2011

शाइस्तगी....


तुम जब भी तनहा होते हो, तुम मुझको सोचा करते हो,
वो एक पुराना नगमा है, जो गाते हो और रोते हो...

मै एक कहानी लिखता हूँ, और चुपके से सो जाता हूँ,
तुम अश्कों की बरसातों में हर रोज़ नहाया करते हो॥

हम परवानों की उल्फ़त पे तो कई क़सीदे पढ़े गए,
कोई क्या जाने वो दर्द-ए-जलन जो शम्मा बनकर सहते हो...

तुम शर्म की नाज़ुक गठरी हो, तुम तहजीबों के हामी हो,
आँखों में मेरा अक्स बसा, खुद पर्दों में गुम रहते हो.....
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(करीब १२ साल पहले लिखी थी ॥)
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शुक्रवार, फ़रवरी 25, 2011

निग़ाह







आँखों में रंग फिजाओं के हैं,
दोस्त हम खिज़ाओं के है....

कल शाम तेरी आँखों ने कहा है,
बरसेंगे हम घटाओं से हैं....

निगाहों में तेरी ये चमकते से जुगनू
फकीरों की सच्ची दुआओं से हैं...

यूँ ताका किये, हम आरिज़ को उनके,
कहेंगे वो कुछ, जो खुदाओं से हैं...

फिजाओं : बहार
खिज़ाओं : पतझड़
आरिज़ : चेहरा