शनिवार, मार्च 26, 2011

गुफ़्तगू ...




वो मेरे अन्दर रहता है, और तेरी बातें करता है,
वो बिलकुल मेरे जैसा है, पर तुझको अपना कहता है

कुछ ऐसी उसकी उल्फत है , तुझको देखे तो जन्नत है...
वो तनहा है और महफ़िल में भी तनहा-तनहा रहता है...

कैसा दीवाना पागल है उस रोज़ मुझे मालूम हुआ
जब बोला देखो चाँद मुझे खिड़की से देखा करता है...

मै अक्सर उसको कहता हूँ, ना तुमसे इतना प्यार करे
क्या चाँद किसी को मिलता है, बस आसमान में रहता है..


(जब करीब १० साल पहले, एक रोज़ खुद से गुफ़्तगू की थी..)

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