शनिवार, अप्रैल 09, 2011

सोचता हूँ

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सोचता हूँ कि भूल जाऊं तुम्हें, सोच के भूल कैसे पाऊंगा
उसको भूलूं ये कैसे मुमकिन है, मै जिसे ज़िन्दगी सा चाहूंगा..

इश्क में तहज़ीब का अदब होता, तुमसे ऐसा भी एक अहद होता
वक़्त ने गर हमें मिलने ना दिया, मै तेरा अजनबी बन जाऊँगा..

हम कहाँ तौर-ए-इश्क जाने हैं, हमसे बेहतर तो ये परवाने हैं...
मै तो जल के भी देखो ज़िन्दा हूँ, यूँ ही जल-जल के जिया जाऊंगा..

दर्द के पिछले सफे खुलने लगे, तुमको देखा तो अश्क गिरने लगे..
चाँद को पाना किसकी किस्मत है, फिर भी मैं फिर से मचल जाऊंगा...


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