शनिवार, अप्रैल 09, 2011

त्रिवेणी...

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मेरा ग़म दायरों में चलता है
अश्क से पहले, आँख मलता है

हिचकियाँ लाइलाज़ होती हैं!!!

मैंने देखा, वो चाँद सा चेहरा
चाँद भी जिससे, बहोत जलता है

चलो अब रोज़ा खोल दे यारों!!!

एक बाज़ार सी ये दुनिया है
"दिल तो बच्चा है" की मचलता है

उनकी कीमत का कुछ हिसाब नहीं!!!

वो मेरे जिस्म को नहीं छूता
रूह में करवटें बदलता है..

जमाने को अब तो ऐतराज नहीं!!!



(आखिरी मुग़ल बादशाह ज़फर के दरबार में त्रिवेणी ईजाद हुयी...
पहले दो मिसरे एक बात कहते हैं, पर तीसरा मिसरा
उपर के दोनों मिसरों को एक अलग ही रंग देता है..)


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