मंगलवार, मई 17, 2011

हम अब भी वहाँ बैठे हैं


...


खुद से होकर जो पशेमान, यहाँ बैठे हैं,
हम किसी बुत के तसव्वुर में, कहाँ बैठे हैं

अब तेरी वस्ल में बैठेंगे,जो हम बैठेंगे,
दर से तेरे जो उठे,लोग, कहाँ बैठे हैं

पूछते ही नहीं, अब आप मेरा हाल हुज़ूर,
और कई साल से, आँखों में निहाँ बैठे हैं

ये मेरी खू-ए-तमन्ना के, निशाँ हैं बाक़ी,
वो जहाँ बैठे थे,हम अब भी वहाँ बैठे हैं



पशेमान : Embarrassed बुत : sculpture(beloved who is as beautiful as a sculpture)
तसव्वुर : thought वस्ल : meeting with beloved
दर : door/gate निहाँ : hidden/not obvious
खू-ए-तमन्ना : passion of desire

...

शनिवार, मई 14, 2011

कू-ए-जाना

दर से उसके जो उठे, उम्र भर बर्बाद रहे
दश्त में रोया किये, बस्ती में नाशाद रहे..

इश्क में उनके हमें, फैज़ इतना तो मिला
सोचकर उनको कभी, देर तलक शाद रहे

इससे बेहतर मेरी यादों का पता क्या होता
झील सी आँख तले , दश्त भी आबाद रहे

वक़्त-ए-रुखसत मुझे, उसने ये दुआ दे डाली
सूखे सेहरा में 'तुम्हे', अश्क की इमदाद रहे