शनिवार, अप्रैल 23, 2011

दिल्ली

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मिज़ाज-ए-दिल में अभी, और जब्त बाकी है,
चमन है उजड़ा, पर एक दरख़्त बाकी है

बुरी है गुज़री, हम पे, हयात इस करके,
तेरे फिराक में भी जाँ ये सख्त, बाकी है,

शमाँ सा जल गया, मैं हस्ती-ए-ज़फर की तरह,
देखें दिल्ली पे अभी, क्या-क्या वक़्त बाकी है..

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