......
किसी करम पे अब खुशफ़हम नहीं होता
ज़िन्दगी ज़िन्दगी है, ये वहम नहीं होता..
तेरे बगैर ही कटती है, ज़िन्दगी सबकी,
तेरा फ़िराक कोई कोह-ए-ग़म नहीं होता
उसे जो ढूँढने निकले, तो ये जाना है
दयार-ए-यार से बढ़कर हरम नहीं होता
सदा के बदले ही पायी है शायरी हमने,
शेर लिखते हैं, अगर ज़ब्त-ए-ग़म नहीं होता...
करम kindness खुशफ़हम who believes in his own version
कोह-ए-ग़म mountain of grief दयार-ए-यार Beloved's place
हरम house of God सदा voice ज़ब्त-ए-ग़म patience to contain grief
......
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें