बेवजह...
शुक्रवार, अप्रैल 08, 2011
तौफ़ीक..
मेरा ग़म दायरों में चलता है
अश्क से पहले, आँख मलता है....
मैंने देखा, वो चाँद सा चेहरा
चाँद भी जिससे, बहोत जलता है..
एक बाज़ार सी ये दुनिया है
"दिल तो बच्चा है" की मचलता है...
वो मेरे जिस्म को नहीं छूता
रूह में करवटें बदलता है....
..
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