बेवजह...
शुक्रवार, अप्रैल 08, 2011
तू
तेरे फ़िराक में गुम, कायनात बन्दे की
नहीं है वस्ल की सोहबत में, ज़ात बन्दे की...
तेरा रुख, तेरे अबरू, तेरे लिबास का रंग
कभी इस दौर से गुज़री, हयात बन्दे की...
मेरे वजूद में शामिल है, वो खुदा की तरह...
उसको माने के ना माने, जमात बन्दे की...
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