तुम ढूढ़ते रहे धूल में आसमान के टुकडे
गैरों की भीड़ में अपनापन तलाशते रहे
दोस्तों को ठोकर मार जो आये थे तुम॥
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तुम्हे दर्द मिला और तन्हाई भी
क्यूँ की प्यार की कद्र तुमने कभी ना जानी
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रास्तों की धूल फांकने की आदत थी तुम्हे
इसीलिए आशियाने कभी तुम्हे रास ना आये
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तुम सूखे गले से मल्हार गाते रहे
और जब बरखा आई!!!!!!!!!
तुम्हारा घर छोड़ हर जगह बादल बरसे....
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