बुधवार, मई 12, 2010

रवायतें...


चन्द घंटों में दिन रात बदलते हैं

वक्त के साथ इंसान बदलते हैं


रुदाद-ऐ-इश्क मुख़्तसर ही बेहतर है

पैकर हो जाए तो किरदार बदलते हैं


अजनबी पहले तो मिलते हैं बड़े खुलूस के साथ,

रब्त बढ़ जाएँ फिर जज़्बात बदलते हैं


"अभिषेक" शायर नयी हवा के हैं

महफिलें बदलें और अशआर बदलते हैं

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