चिर स्वप्नों में रची बसी अभिलाषा के शव को ढोता
मै आता घनघोर तम के पथ में दीप जलाता
कंटकों से पूर्ण पथों पर लहूलुहान पैरों से चलता
पीड़ा रखता मन ही में आँखों से ना कतरा छलकाता
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दुर्निवार उन शूल सदृश स्मृतियों की जो चिन्ह अमिट
उन तीखे व्यंगों, उफासों के घावों को जो चिर स्मृत
उन्हें भुलाने के प्रयास में जो याद मुझे सब आता
लगता ऐसा जैसे मै भीगे पातों से आग जलाता
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